मऊ के रसड़ी हनुमान मंदिर, दूसरे स्थान पर ले जाना चाहते थे लोग लेकिन मूर्ति टस से मस न हुई
यह है कुटी का इतिहास
रसड़ी गांव के पूरब तब सूनसान जंगल था एवं कुछ ही दूरी पर ताल था। रतनपुरा महाराज के घराने के रामभरोसा त्रिपाठी अचानक घर त्याग कर घूमते हुए यहां जंगल के बीचोबीच आ पहुंचे। यहां पर उन्होंने हनुमानजी की मिट्टी की प्रतिमा बनाया और पूजन करने लगे। सुबह-शाम नियमित पूजन के दौरान शंख बजाते थे। कई दिन लगातार जंगल से शंख की आवाज आने पर रसड़ी के चौधुर रामजन सिंह कुछ ग्रामीणों के साथ वहां पहुंचे। उनके आग्रह पर साधु श्री त्रिपाठी गांव में आए। गांव में कोढ़ का प्रकोप था।
साधू ने प्रतिमा के समीप छोटे से गड्ढे को पोखरा का रूप देने को कहा। पोखरा पूर्ण होने को था कि शाम को वेदी के समीप से गर्जना सुनाई दी। खोदाई कर रहे श्रमिक डर गए। साधू ने उनको अपने समीप बुलाया और कदापि भयभीत न होने को कहा। अचानक हनुमान जी की मिट्टी की प्रतिमा फट कर बिखर गई और पोखरे में जमीन से स्वत: रिस कर पानी आने लगा। यह देख रसड़ी के रामजन सिंह सहित सभी ग्रामीणों, बेला सुल्तानपुर के शिवव्रत राय सहित समस्त ग्रामीणों, नउवाडीह के गोंसाई बाबा एवं केरमा महरूपुर और सरायगनेश सहित अन्य निकटवर्ती गांवों के नागरिकों ने यहां पर मंदिर बनाने और सहयाेग करने का निर्णय लिया।
प्रतिमा टस से मस न हुई
मंदिर निर्माण चल ही रहा था कि राजस्थान का एक मारवाड़ी आ पहुंचा। उसने साधू से स्वयं के निर्दोष होने एवं रंजिश के कारण हत्या के केस में फंसाए जाने की जानकारी दी। साधू ने कहा कि यहां पर रहो। अगर दोषी नहीं हो तो हनुमान जी बचा लेंगे। कुछ दिनों बाद वह वापस गया और मुकदमे से बरी होने पर दोबारा आया। मारवाड़ी ने यहां पर हनुमान जी की प्रतिमा ट्रेन से भेजने को कहा। प्रतिमा रतनपुरा आई।
हनुमान जी की सजीव प्रतिमा देख रतनपुरा के नागरिकों ने इसे रतनपुरा में ही स्थापित करने का दबाव बनाया। रतनपुरा के लोगों के लाख प्रयास के बावजूद प्रतिमा टस से मस न हुई। थकहार कर लोग चले गए। इस बीच रसड़ी के नागिरक बैलगाड़ी लेकर पहुंचे। मात्र चार व्यक्तियों ने प्रतिमा उठाकर बैलगाड़ी में रख दिया। इस मंदिर पर शंकर जी सहित कई देवताओं के मंदिर बने हैं पर आज भी सर्वाधिक श्रद्धालु बजरंग बली का ही दर्शन करने आते हैं। आज भी मंदिर के संस्थापक रामभरोसा दास का जयकारा बुढवा बाबा के रूप में होता है।
दशहरा में लगता है मेला
इस मंदिर पर प्रत्येक मंगलवार एवं शनिवार को श्रद्धालुओं की भारी संख्या आती है। शिवरात्रि एवं हनुमान जयंती पर यह संख्या बढ़ जाती है। परंपरागत रूप से यहां पर दशहरा के मेले में सर्वाधिक भीड़ उमड़ती है।
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