देवघर त्रिकुट रोपवे हादसाः 'पानी नहीं था तो पेशाब पीने की आई नौबत'!
ऐसे ही एक पर्यटक ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि करीब 28 घंटों तक हवा में झूलते रहे और ऊंचाई पर रहने के कारण उन्हें न तो पानी मिला और न ही कोई अन्य राहत सामग्री जिस कारण उनकी स्थिति ऐसी हो गई थी कि वे पेशाब पीने को भी तैयार थे. हालांकि इस तरह की परिस्थिति में भी ट्रॉली में फंसे लोगों ने हिम्मत नहीं हारी और मजबूती से इस जंग का सामना किया.
हादसे के बाद भागने की बात कर रहे थे कर्मी
इस हादसे में ट्रॉली नंबर 3 में सवार भागलपुर बिहार के लोगों ने बताया कि वह लोग करीब 28 घंटो तक हवा में झूलते रहे और ऊंचाई पर रहने के कारण उन्हें न तो पानी मिला और न ही कोई अन्य राहत सामग्री जिस कारण उनकी स्थिति ऐसी हो गई थी कि वे अब मूत्र पीने को भी तैयार थे क्योंकि इसके अलावा उनके पास कोई और चारा नहीं था. इन लोगों को वायु सेना के हेलीकाप्टर की मदद से ही रेस्क्यू किया गया. इन लोगों ने बताया कि जब हादसा हुआ तो इन्होंने हेल्प लाइन नंबर पर कॉल किया तो इन्हें जो आवाज सुनाई दी वो चौंकाने वाली थी जो भी कर्मी रोपवे के थे. वे एक दूसरे को हादसे के बाद भागने को कह रहे थे.
दूध के बिना बच्चे की हालत हो रही थी खराब
देवघर रोपवे हादसे में एक ट्रॉली में अपने परिवार के साथ बच्चा भी फंसा था. रेस्क्यू के बाद बाहर आए कुछ लोगों ने बताया कि उनके साथ एक साल का भी था. बच्चे को लगातार कई घंटों तक दूध नहीं मिलने से उसकी भी हालत खराब हो रही थी. लेकिन, सेना के जवानों ने रेस्क्यू के दौरान बच्चे को सुरक्षित बाहर निकाला. हालांकि उसकी स्थिति थोड़ी गंभीर होने की वजह से उसे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती भी कराया गया.
2500 फीट की ऊंचाई पर हवा में 2 रात लटकते रहे लोग
बता दें, बीते रविवार शाम को देवघर के मोहनपुर प्रखंड अंतर्गत त्रिकुट पहाड़ पर रोपवे की ट्रॉली में आई तकनीकी खराबी से यह हादसा हुआ. इस हादसे में 3 लोगों की मौत हो गयी. घटना के बाद 8 ट्रॉली हवा में लटक गयी थीं. जिनमें 59 लोग फंस गये. पर्यटकों को 2 रातें ट्रॉली में गुजरनी पड़ीं. स्थानीय लोगों के अनुसार इस हादसे के लिए रोपवे संचालक जिम्मेदार है. एक बार में 12 ट्रॉली के बदले 26 ट्रॉली को खोल दिया गया, जिसके चलते इतना बड़ा हादसा हुआ.
रेस्क्यू के दौरान चली गयी दो लोगों की जान
इस ऑपरेशन में लगे सेना के जवानों ने बताया कि ये ऑपरेशन उनके सबसे टफ टास्कों में से एक था लेकिन ऑपरेशन में इतने लोगों को सफलतापूर्वक रेस्क्यू करना उन्हें सुकून दे रहा है. हालांकि ऑपरेशन के दौरान दो लोगों की मौत उनके दिलों को भी कचोट रही है. जवानों के अनुसार त्रिकुट पर्वत पर हादसे के बाद ट्रॉलियों की जो पोजीशन थी वह बहुत कठिन स्थिति में थी, ऐसे में वहां तक हेलीकाप्टर और जवान को पहुंचने में काफी दिक्कत हो रही है. तेज हवा के साथ परेशानी और बढ़ जा रही थी, स्टेबल रखना मुश्किल हो रहा था. लेकिन, सभी लोगों ने मिलकर एक साथ काम किया और 57 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला.
एयरफोर्स, इंडियन आर्मी, एनडीआरएफ, आईटीबीपी को सलाम
त्रिकुट पर्वत पर चल रहे इस ऑपरेशन में एयरफोर्स, इंडियन आर्मी, एनडीआरएफ, आईटीबीपी समेत स्थानीय प्रशासन ने बड़ी भूमिका निभाई. सभी के सार्थक प्रयास इस ऑपरेशन को अंजाम दिया गया और 57 लोगों की जान बचाई गयी. इस पूरे ऑपरेशन में एनडीआरएफ की टीम ने भी काफी मशक्कत की. एनडीआरएफ की टीम के डीआईजी एमके यादव ने भी इस ऑपरेशन के दौरान आई मुश्किल परिस्थियों की जानकारी देते हुए कहा कि ट्रॉलियां जिस जगह पर फंसी थीं वहां राहत टीम को पहुंचने में काफी दिक्कत हो रही थी. आईटीबीपी के जवान लगातार रेस्क्यू किए गए लोगों के प्राथमिक इलाज के बाद उन्हें अस्पताल भेजने में जुटे थे. गरुड़ कमांडो अपनी जान जोखिम में डालकर ट्रॉलियों से लोगों को निकालने के लिए 2500 फीट ऊपर हवा में लटक रहे थे.
हालांकि भले ही सेना के जवानों ने भले ही रेस्क्यू ऑपरेशन करके के 57 लोगों की जान बचा ली हो लेकिन इस पूरे ऑपरेशन के दौरान हर पल खतरे का एहसास जवानों और पर्यटकों दोनों को हो रहा था. विषम परिस्थितियों के बीच रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम देना कोई आसान काम नहीं था. लेकिन, जवानों और ट्रॉली में फंसे पर्यटकों के जज्बे को सलाम है जिस वजह 57 जानें बच सकी.
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