उत्तर प्रदेश में किसानों को अब फसल बीमा अनिवार्य नहीं, फसली ऋण लेने वालों को भी मिलेगी यह छूट
लखनऊ । कोरोना संकट में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने किसानों को एक और राहत प्रदान की है। किसानों को अब फसल बीमा अनिवार्य न होकर पूर्णत स्वैच्छिक होगा। खरीफ के सीजन में भी जो किसान फसल बीमा नहीं कराना चाहेगा उसे बाध्य नहीं किया जा सकेगा। यह छूट फसली ऋण लेने वाले किसानों को भी मिलेगी। अब उनको योजना में भागीदार नहीं बनने की सूूचना संबंधित बैंक शाखा में अंतिम तिथि से सात दिन पूर्व देनी होगी।
कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही ने सोमवार को बताया कि किसानों की लंबे समय चली आ रही मांग को देखते हुए भारत सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना के प्रावधानों में कई संशोधन किए है। अब बीमा योजनाएं पूर्णत: स्वैच्छिक होंगी। अब तक फसली ऋण लेने वाले सभी किसानों को अनिवार्य रूप से बीमा योजना में भागीदार बनना होता था। गन्ना व अन्य फसलों के किसान बीमा योजना की अनिवार्यता का विरोध करते चले आ रहे थे। भाकियू नेता धर्मेंद्र मलिक का कहना है कि गन्ने की फसल को मौसम का न्यूनतम नुकसान होता है परंतु किसानों से बीमा कंपनियों को बेवजह किश्त अदा करनी पड़ती थी।
बीमा कंपनियों का कार्यकाल बढऩे से संचालन प्रभावी होगा
कृषि मंत्री शाही ने बताया कि नए संशोधनों में बीमा कंपनियों का कार्यकाल भी एक अथवा दो वर्ष से बढ़ाकर तीन वर्ष कर दिया गया है। नए निर्देशों के अनुसार अब बीमा कंपनी का चयन तीन वर्ष के लिए किया जाएगा। इससे बीमा कंपनियों की कार्यकुशलता बढ़ेगी और अपने क्षेत्र में योजना को प्रभावी ढंग से लागूू करने के लिए स्थायी कर्मचारी नियुक्त करने का मौका मिलेगा। अपनी साख बनाए रखने को बीमा कंपनियां बैंकों व किसानों से बेहतर तालमेल बनाकर ही अपना व्यवसाय कर सकेंगी।
गत पांच वर्षों में सर्वाधिक उपज के औसत पर आंकलन होगा
किसानों को अब तक जिले स्तर पर फसल का लागत मूल्य पर बीमा किया जाता था परंतु संशोधन के बाद बीमित राशि का निर्धारण गत वर्षो की औसत उपज व न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर होगा। गत सात वर्षो में से सर्वाधिक उपज वाले पांच वर्ष का औसत तथा केंद्र सरकार द्वा्रा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से गुणात्मक आंकलन के आधार पर बीमित राशि तय होगी। कृषि मंत्री ने दावा किया कि इससे किसानों को लाभांश की प्रतिपूर्ति भी हो सकेगी।
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